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त्वाम॒स्या व्युषि॑ देव॒ पूर्वे॑ दू॒तं कृ॑ण्वा॒ना अ॑यजन्त ह॒व्यैः। सं॒स्थे यद॑ग्न॒ ईय॑से रयी॒णां दे॒वो मर्तै॒र्वसु॑भिरि॒ध्यमा॑नः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām asyā vyuṣi deva pūrve dūtaṁ kṛṇvānā ayajanta havyaiḥ | saṁsthe yad agna īyase rayīṇāṁ devo martair vasubhir idhyamānaḥ ||

पद पाठ

त्वाम्। अ॒स्याः। वि॒ऽउषि॑। दे॒व॒। पूर्वे॑। दू॒तम्। कृ॒ण्वा॒नाः। अ॒य॒ज॒न्त॒। ह॒व्यैः। स॒म्ऽस्थे। यत्। अ॒ग्ने॒। ईय॑से। र॒यी॒णाम्। दे॒वः। मर्तैः॑। वसु॑ऽभिः। इ॒ध्यमा॑नः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:3» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजधर्म को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) श्रेष्ठ गुणों से युक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान ! (देवः) विद्वान् होते हुए आप (यत्) जिससे (अस्याः) इस प्रजा के मध्य में (संस्थे) उत्तम प्रकार स्थित होते हैं, जिसमें उसमें (रयीणाम्) धनों के बीच (वसुभिः) धन आदि पदार्थों से युक्त (मर्तैः) मरणधर्मवाले मनुष्यों से (इध्यमानः) प्रकाशित किये गये (ईयसे) प्राप्त होते वा जाते हो और पालन का (व्युषि) सेवन करते हो उन (त्वाम्) आपको (हव्यैः) प्रशंसा करने योग्य पदार्थों से (दूतम्) शत्रुओं के नाश करनेवाले (कृण्वानाः) करते हुए (पूर्वे) पालन करनेवाले विद्वान् जन (अयजन्त) मिलें ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप विद्या और विनय से न्यायपूर्वक प्रजाओं का निरन्तर पालन करें तो आप को यश, धन, राज्य की उन्नति और उत्तम पुरुष प्राप्त होवें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजधर्म्ममाह ॥

अन्वय:

हे देवाग्ने ! देवस्त्वं यदस्याः संस्थे रयीणां वसुभिर्मर्तैरिध्यमान ईयसे पालनं व्युषि तं त्वां हव्यैर्दूतं कृण्वानाः पूर्वे विद्वांसोऽयजन्त ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (अस्याः) प्रजाया मध्ये (व्युषि) सेवसे (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (पूर्वे) पालनकर्त्तारः (दूतम्) यो दुनोति शत्रूँस्तम् (कृण्वानाः) (अयजन्त) सङ्गच्छेरन् (हव्यैः) पूजितुमर्हैः (संस्थे) सम्यक् तिष्ठन्ति यस्मिँस्तस्मिन् (यत्) यस्मात् (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (ईयसे) प्राप्नोषि गच्छसि वा (रयीणाम्) धनानाम् (देवः) विद्वान् सन् (मर्त्तैः) मरणधर्म्मैर्मनुष्यैः (वसुभिः) धनादियुक्तैः (इध्यमानः) देदीप्यमानः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि भवान् विद्याविनयाभ्यां न्यायेन प्रजाः सततं पालयेत्तर्हि त्वां कीर्त्तिर्धनं राज्योन्नतिरुत्तमाः पुरुषाश्च प्राप्नुयुः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू विद्या व विनय या द्वारे न्यायाने प्रजेचे सतत पालन केलेस तर तुला यश, धन, राज्याची उन्नती व उत्तम पुरुष मिळतील. ॥ ८ ॥